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Sunday, June 22, 2025

यादों की बारातें...

उनकी उँगली पकड़कर,किसी राह जब चलता था,

मंज़िल दूर होने पर भी, वो सफ़र ना अखरता था..

थम ही जाती थी दुनिया, उनके कंधों पर बैठने से,

चाँद तारों को देखकर अक्सर ये मन मचलता था..


उनके होंठों की नमी से मेरा चेहरा खिल जाता था,

रूठे बच्चे को जैसे, नया खिलौना मिल जाता था..

कच्ची नींद में जब पड़ी उनकी आवाज़ कानों पर,

खुशियों भरी चीखों से सारा घर ही हिल जाता था..




याद आती है उनके बालों की वो गुदगुदाती चुभन,
जब अपनी दाढ़ी से वो मेरे गालों को सहलाते थे..
याद आती हैं उनकी हथेलियों की वो गहरी दरारें,
अपने हाथों से जब मुझे जीभर खाना खिलाते थे..

उसी प्यारे से घर में काश हम साथ-साथ में रहते,
बचपन की कहानी-किस्से हम बात-बात में कहते....
सुबह-शाम होती कभी मुलाकात जब किसी पल,
अतीत के किसी प्रवाह में हम साथ-साथ में बहते.... 

गूँज जाती हैं आज भी उनकी वो मीठी-मीठी बातें,
मूँगफली और अलाव के साथ बीती कई सर्द रातें..
इन्द्रधनुष की सतरंगी रौशनी में खिलखिलाते हुए,
सेहरा बाँध कर खड़ी हैं आज मेरी यादों की बारातें..